Top+3 nag Panchami ki Kahani

1.nag Panchami ki Kahani | Story of nag Panchami part.1

nag Panchami ki Kahani,नाग पंचमी व्रत कथा प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र थे। सातों के विवाह हो चूके थे। सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील। परन्तु उसका भाई नहीं था। 1 दिन बड़ी बहू ने घर लिखने को पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने को कहा तो सभी धलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगी। तभी वहाँ एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगीं। यह देखकर छोटी बहू ने उसे रोकते हुए कहा मत मारो इसे यह बेचारा निरपराध है।

यह सुनकर बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा तब सर्प एक और जा बैठा। तब छोटी बहू ने उससे कहा। हम अभी लौट कर आते हैं। तुम यहाँ से जाना मत। यह कहकर वह सबके साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहाँ कामकाज में फँसकर सबसे जो वादा किया था उसे भूल गई। उसे दूसरे दिन वह बात याद आई तो सबको साथ लेकर वहाँ पहुंची और सब को उस स्थान पर बैठा देखकर बोली सर्प भैया नमस्कार सर्प ने कहा तू भैया कह चुकी है इसलिए तुझे छोड़ देता हूँ। नहीं तो झूठी बात कहने के कारण तुझे अभी डस लेता।

वह बोली भैया मुझसे भूल हो गई, उसकी क्षमा मांगती हूँ, तब सर्प बोला अच्छा तू आज से मेरी बहन हुई और मैं तेरा भाई हुआ तुझे जो मांगना हो मांग ले। वह बोली भैया मेरा कोई नहीं है, अच्छा हुआ जो तू मेरा भाई बन गया।

2.nag panchami ki kahani PART-2

कुछ दिन व्यतीत होने पर वह सर्प मनुष्य का रूप रखकर उसके घर आया और बोला कि मेरी बहन को भेज दो। सबने कहा, इसके तो कोई भाई नहीं था तो वो बोला मैं दूर के रिश्ते में इसका भाई हूँ। बचपन में ही बाहर चला गया था। उसके विश्वास दिलाने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया। उसने मार्ग में बताया कि मैं वहीं सर्प हूँ, इसलिए तू डरना नहीं और जहाँ चलने में कठिनाई हो वहाँ मेरी पूंछ पकड़ लेना। उसने कहे अनुसार ही किया और इस प्रकार वह उसके घर पहुँच गई।

वहाँ के धन ऐश्वर्य को देखकर वह चकित हो गई। 1 दिन सबकी माता ने उससे कहा, मैं एक काम से बाहर जा रही हूँ, तू अपने भाई को ठंडा दूध पीला देना। उसे यह बात ध्यान ना रही और उसने गर्म दूध पीला दिया, जिसमें उसका मुख बेतरह जल गया।

nag Panchami

3.nag panchami ki kahani part -3

यह देखकर सबकी माता बहुत क्रोधित हुई, परंतु सर्प के समझाने पर शांत हो गयी। तब सर्प ने कहा की बहन को अब उसके घर भेज देना चाहिए। तब सर्प और उसके पिता ने उसे बहुत सा सोना, चांदी जवाहरात, वस्त्र भूषण आदि देकर उसके घर पहुंचा दिया। इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या से कहा भाई तो बड़ा धनवान है तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए। सर्प ने यह वचन सुना तो सब वस्तुएं सोने की लाकर दे दी या देखकर बड़ी बहू ने कहा इन्हें झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए। तब सर्प ने झाडू भी सोने की लाकर रख दी।

अपने छोटी बहू को हीरा मणियों का एक अद्भुत हार दिया था। उसकी प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनीं और वो राजा से बोली की सेठ की छोटी बहू का हार यहाँ आना चाहिए। राजा ने मंत्री को हुक्म दिया की उससे वो हार लाकर सिंह उपस्थित हो। मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि महारानीजी छोटी बहू का हार पहने गी, वो उससे लेकर मुझे दे दो।

4.nag panchami ki kahani Part -4

सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार मांग कर दे दिया। छोटी बहू को यह बात बहुत बुरी लगी। उसने अपने सर्प भाई को याद किया और आने पर प्रार्थना की। भैया रानी ने हार छीन लिया है। तुम कुछ ऐसा करो की जब वो हार उसके गले में रहे तब तक के लिए सर बन जाये और जब वो मुझे लौटा दे तब हीरों और मणियों का हो जाए ने ठीक वैसा ही किया। जैसे ही रानी ने हार पहना वैसे ही वो सर्प बन गया।

यह देखकर रानी चीख पड़ी और रोने लगी या देखकर राजा ने सेठ के पास खबर भेजी की छोटी बहू को तुरंत भेजो। सेठजी डर गए कि राजा ना जाने क्या करेगा? वे स्वयं छोटी बहू को साथ लेकर उपस्थित हुए। राजा ने छोटी बहू से पूछा तुने क्या जादू किया है? मैं तुझे दंड दूंगा चोटी बहू बोली राजन दृष्टता छमा कीजिए।

यह हार ही ऐसा है की मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है। यह सुनकर राजा ने वह सर्प बना हार उसे देखकर कहा अभी पहनकर दिखाओ। बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही रोमियो का हो गया। यह देखकर राजा को उसकी बात पर विश्वास हो गया और उसने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं भी पुरस्कार में दी। छोटी वह अपने हार और धन सहित घर लौट आई।

उसके धन को देखकर बड़ी बहू ने ईर्ष्या के कारण उसके पति को सिखाया। की छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है। यह सुनकर उसके पति ने अपनी पत्नी को बुलाकर कहा। ठीक ठीक बता की यह धन तुझे कौन देता है? तब वो सबको याद करने लगी, तब उसी समय सर्प ने प्रकट होकर कहा, यदि मेरी धर्म बहन के आचरण पर संदेह प्रकट करेगा तो मैं उसे खा लूँगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सर्प देवता का बड़ा सत्कार किया। उसी दिन से नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है और स्त्रियां सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा करती है।

नाग पंचमी का महत्त्व नाग पंचमी का त्योहार सावन में मनाया जाता है। श्रावण माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग देवता की पूजा की जाती है किंतु भारत के कुछ स्थानों पर नाग पंचमी श्रावण माँ के कृष्ण पक्ष की पंचमी को भी मनाई जाती है और कुछ जगह पर जैसे गुजरात में कृष्ण जन्माष्टमी के 3 दिन पहले और बहुला चौथ व्रत के अगले दिन नागपंचमी का त्योहार मनाया जाता है।

इस तरह से नाग पंचमी का त्योहार कम महत्त्व अलग अलग स्थान के लोगों में अलग अलग है। वे अपने रीती रिवाजों के अनुसार इसे मनाते हैं। इस दिन नाग देवता के दर्शन करना शुभ माना जाता है। नाग पंचमी पूजा विधि नागपंचमी की पूजा का नियम सभी का अलग होता है। कई तरह की मान्यता होती है। एक तरह की नागपंचमी पूजा विधि यहाँ बताई गई है।

The Tale of Naag Panchami

Realated Post:Nag Panchami | nag Panchami photo

5.nag panchami ki kahanin Part-5

सबसे पहले सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान किया जाता है। निर्मल स्वच्छ वस्त्र पहने जाते हैं। भोजन में सभी के अलग नियम होते हैं एवं उन्हीं के अनुसार भोग लगाया जाता है। कई घरों में दाल बांटी बनती है। कई लोगों के यहाँ खीर पुड़ी बनती है। कईयों के यहाँ चावल बनाना गलत माना जाता है। कई परिवार इस दिन चूल्हा नहीं जलाते, उनके घर बासा खाने का नियम होता है। इस तरह सभी अपने हिसाब से भोग तैयार करते हैं। इसके बाद पूजा के लिए घर की एक दीवार पर गेरू जो कि एक विशेष पत्थर है, सेलेब कर यह हिस्सा शुद्ध किया जाता है।

यह दीवार कई लोगों के घर की प्रवेशद्वार होती है तो कई के रसोईघर की दीवार। इस छोटे से भाग पर कोयले एवं घी से बने काजल की तरह के लैब से एक चौकों डिब्बा बनाया जाता है। इस डिब्बे के अंदर छोटे छोटे सर्वर बनाए जाते हैं। इस तरह की आकृति बनाकर उसकी पूजा की जाती है। कई परिवारों में या सर्प की आकृति कागज पर बनाई जाती है। कई परिवार घर के द्वार पर चंदन से सर्प की आकृति बनाते हैं एवं पूजा करते हैं। इस पूजा के बाद घरों में सपेरों को लाया जाता है।

जिनके पास टोक इनीमे सर्व होता है जिसके दांत नहीं होते साथ ही इनका जहर निकाल दिया जाता है। उनके ही पूजा की जाती है। उन्हें अक्षत, पुष्प, कुमकुम चढ़ाकर दूध एवं भोजन का भोग लगाया जाता है। इस दिन सर्व को दूध पिलाने की प्रथा है साथ ही सपेरों को दान दिया जाता है। कई लोग इस दिन कीमत देकर सबको सपेरे के बंधन से मुक्त भी कराया। है।

इस दिन बाम्बी के भी दर्शन किए जाते हैं। बाम्बी सर्वे के रहने का स्थान होता है जो मिट्टी से बना होता है, उसमें छोटे छोटे छिद्र होते हैं, वह एक टीले के समान दिखाई देता है। इस प्रकार नागपंचमी की पूजा की जाती है, फिर सभी परिवारजनों के साथ मिलकर भोजन करते हैं।

आपको और आपके पूरे परिवार को सादर Jay shree krishna Radhe Radhe सादर धन्यवाद।

2.”When the Queen Bestowed Life upon the Serpent | The Tale of Naag Panchmi | The Story of Naag Panchami Festival”

जब रानी ने दिया नाग को जन्म | Naag Panchmi Kahani | नागपंचमी की कहानी | Naag Panchami Katha

1.Naag Panchami Katha part-1.

नमस्कार, दोस्तों happywishesimages.com पर आपका स्वागत है। आज हम आपके लिए नागपंचमी से जुड़ी हुई एक और रोचक कथा लेकर आए हैं जिसमें एक रानी द्वारा सब को जन्म दिया जाता है। एक समय की बात है, किसी नगर में राजा और रानी रहा करती थी। उनकी महल में किसी प्रकार की सुविधा या सुख की कोई कमी नहीं थी। लेकिन उन दोनों की कोई संतान नहीं थी। इस वजह से दोनों काफी उदास रहते थे। उन्होंने कई मंदिरों में संतान प्राप्ति के लिए पूजा और प्रार्थना भी की, लेकिन उन्हें संतान का सुख नहीं मिला।

उनके नगर में भगवान शिव का एक मंदिर था। संतान प्राप्ति की कामना से रानी प्रतिदिन वहाँ जाया करती थी। भगवान भोलेनाथ की कृपा से रानी आखिरकार गर्भवती हो गई। और उसने एक सुंदर राजकुमार को जन्म दिया। परन्तु पैदा होते ही वह बालक एक सांप में बदल गया। रानी की गर्भ से एक सिर्फ पैदा होने की बात तेजी से पूरे गांव में फैल गई। और लोगों को यह सुनकर बड़ा ही आश्चर्य हुआ। राजा को उनके मंत्रियों और सलाहकारों ने यह सलाह भी दी कि वह सांप को घर में ना रखें। वह या तो उसे मार दे या फिर जंगल में छोड़ा।

लेकिन रानी अपनी ममता के आगे विवश हो गई और पुत्र के मुँह के चलते राजा रानी ने बड़े प्यार से उस नाग शिशु का पालन पोषण किया। रानी उस्ताद का बहुत ध्यान रखा करती थीं और इस प्रकार धीरे धीरे वह सा बड़ा हो गया। अब रानी को उसके विवाह की चिंता होने लगी। जब रानी ने राजा को अपनी चिंता का विषय बताया तो राजा ने अपने रिश्तेदारों से विवाह की बात कही। यह सुनकर सभी रिश्तेदारों ने मदद से इनकार कर दिया। अपनी बहू की तलाश में राजा दूसरे नगर में अपने मित्र के पास पहुँच गए।

2.Naag Panchami Katha.part-2

राजा को देखकर उनका मित्र अत्यंत प्रसन्न हुआ और उनके मित्र ने राजा से वहाँ आने का कारण पूछा। राजा ने उन्हें बताया कि वह अपने पुत्र के विवाह के लिए कन्या की तलाश कर रहे हैं। इस पर राजा के मित्र ने उनसे कहा। की मित्र अब तुम चिंता छोड़ दो। मैं अपनी कन्या के विवाह के लिए योग्य वर की तलाश कर रहा था। तुम्हारी बात सुनकर मैं सोच रहा हूँ

कि अपनी कन्या का विवाह तुम्हारे पुत्र से करवा दो। राजा बोला। तुम जल्दबाजी में यह निर्णय मत लो पहले तुम मेरे पुत्र से मिल तो लो। इस पर उनका मित्र बोला। की इसमें देखना क्या है तुम पर मुझे पूरा भरोसा है मेरी कन्या को तुम अपने साथ ही ले जाओ और अपने नगर में उसका विवाह अपने पुत्र के साथ कर देना। राजा के मित्र ने अपनी कन्या को बुलाया और उसे राजा को सौंप दिया।

कन्या अपने पिता का आदेश मानकर राजा के साथ उनके महल चली गई। महल पहुँचकर राजा ने कन्या से कहा। की पुत्री दरअसल हमारा पुत्र तो एक सर्प है और तुम उससे विवाह कैसे करोगी? यह सुनकर कन्या भोली? क्यों उसे इस बात से कोई आपत्ति नहीं है। अपने पिता के आदेशानुसार मैं आपके पुत्र से अवश्य ही विवाह करूँगी। इसके बाद राजा और रानी अपने पुत्र सर्प का विवाह अपने मित्र की कन्या के साथ धूमधाम से करवा देते हैं।

3.Naag Panchami Katha-3

वह कन्या अपने पति स्व की बहुत सेवा करती है और उसकी सभी जरूरतों का ध्यान रखती हैं। 1 दिन वह अपने कमरे में आती है और वहाँ पर एक युवक को देखकर घबराहट से चिल्लाने लगती है। उसकी आवाज़ सुनकर राजा और रानी भी उसके कमरे में आ जाते हैं। तब हैं युवक कन्या से कहता है। की तुम घबराओ मत, मैं तुम्हारा पति सर हूँ। देखो कमरे के कोने में मेरा सर आपका शरीर पड़ा हुआ है। दरअसल, पिछले जन्म में मैं एक गंधर्व था और तुम एक किन्नरी थी। हम दोनों एक दूसरे से बेहद प्रेम करते थे।

1 दिन हम लोग वन में गीत गा रहे थे। और वहीं पर एक ऋषि तपस्या कर रहे थे। हमारी आवाज से ऋषि की तपस्या भंग हो गई थी। और क्रोधित होकर उन्होंने मुझे अगले जन्म में सर्व के रूप में पैदा होने का शाप दे दिया। लेकिन अब मैं उनके हिसाब से मुक्त हो गया हूँ। यह सुनकर राजा रानी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। वह अपने पुत्र को गले से लगा लेते हैं और अपनी पुत्रवधू को आशीर्वाद देते हैं। तो यह थी नागपंचमी के अवसर पर आप के लिए एक अन्य रोचक कथा नागपंचमी से जुड़ी अन्य कहानियों के लिए website ko subscribe kare आप पर उपलब्ध कथाओं को अवश्य पढ़ें और सुनें।

3.”The Tale of Radha and Her Serpent Brother | Naag Panchmi Story 2023 | The Story of Naag Panchami Festival”

राधा और उसके सर्प भाई की कथा | Naag Panchmi Kahani 2023 | नागपंचमी की कहानी | Naag Panchami Katha

happywishesimages.com आप पर आप सभी का स्वागत है। आज हम आपके लिए नागपंचमी से जुड़ी हुई एक अन्य पौराणिक कथा लेकर आए हैं। तो चलिए इस कथा को विस्तार से जानते हैं।एक समय की बात है, किसी एक गांव में एक कुम्हार अपनी बेटी राधा और अपनी पत्नी के साथ निवास करता था।उसकी बेटी भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थीं और उनकी पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना किया करती थी। दिन उस कुमार ने अपने बेटे से बर्तन बनाने के लिए मिट्टी लाने को कहा।

पिता के कहने पर राधा मिट्टी लाने के लिए जंगल में चली गयी। वहाँ मिट्टी खोदते वक्त उसके सामने एक नाग aa गया राधा नाग को देखकर घबरा गई और उसकी घबराहट को देखते हुए नाग देवता ने एक मनुष्य का रूप धारण कर लिया। नाग देवता राधा से बोले कि पिछले जन्म में तुम मेरी बहन थी, तुम्हें देखते ही मुझे सब याद आ गया है।अब मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा और तुम्हारी रक्षा करूँगा। राधा यह सब सुनकर काफी खुश हो गईं और अपने भाई से कुछ देर तक बात करने के बाद घर वापस चली गयी।

घर पहुँचकर राधा ने यह पूरा व्रत नांत अपने माता पिता को सुनाया। इस बात को सुनकर उसके माता पिता चिंतित हो गए और उन्होंने राधा को जंगल में जाने से मना कर दिया।राधा ने अपने माता पिता की बात को मानने से इनकार कर दिया और वह बोलीं कि मेरा कोई भाई नहीं है और मैंने ना देवता को भाई मान लिया है।इसलिए मैं उसे जंगल में मिलने अवश्य जाया करूँगी। अपनी बात पर अडिग रहकर राधा अगले दिन जंगल में अपने भाई के लिए दूध लेकर गई। कुछ देर बाद नाग देवता और उन्होंने दूध ग्रहण किया और उन्होंने फिर से मनुष्य का रूप धारण कर लिया।

इसके बाद उन्होंने राधा को एक पोटली दी और बोला कि तुम यह पोटली घर जाकर खोलना राधा। वह पोटली लेकर घर चली गई और जब घर जाकर उसने वह पोटली खोलकर देखी तो उसमें सोने के सिक्के भरी हुई थी। अगले दिन राधा की माता पिता भी उस स्थान पर पहुँच गए जहाँ नाग देवता राधा से मिलने आती थी। वहाँ उन्होंने राधा की पिछले जन्म के भाई से बात की और फिर वह लोग भी ना देवता से मिलने आने लगी। धीरे धीरे यह बात पूरे गांव में फैल गई और वहाँ के लोगों ने डाक के गांव में रहने पर आपत्ति जताई।

उन्होंने कहा कि अगर ना गांव में रहेगा तो पूरे गांव के लोगों पर खतरा बना रहेगा। गांव के लोगों ने इकट्ठे होकर राधा के पिता के पास पहुंचने का फैसला किया। वह लोग राधा के घर पहुँचकर बोले के इस नाग को गांव से दूर भगा दो क्योंकि यह अन्य लोगों के लिए खतरा बन सकता है।राधा और उसके परिवार ने उन लोगों को समझाने का काफी प्रयास किया कि वह किसी को हानि नहीं पहुंचाएगा।लेकिन गांव के लोग ना को भगाने की अपनी बात पर अड़े रहे। इसके बाद राधा और उसके माता पिता ने नाक से विनती की कि वह गांव छोड़कर चला जाए।

इस बार नाग ने कहा कि आप लोग परेशान ना हों, मैं यहाँ से चला जाऊंगा।यह सुनकर राधा बोली की भैया अब हम दोनों कैसे मिल पाएंगे?ना। देवता ने इस प्रश्न के उत्तर में कहा कि मेरे यहाँ रहने से तो नहीं, लेकिन मेरे यहाँ से जाने से गांव पर जरूर विपिन आएंगी।अगर ऐसा हो तो नागपंचमी पर इसी स्थान पर दूध रख देना और मन में मुझे याद करना मैं तुम्हारे पास आ जाऊंगा।इतना कहकर वह नाग वहाँ से चला गया। कुछ दिनों के पश्चात सावन के महीने में हर जगह बारिश होने लगी और हरियाली छा गई।लेकिन।

गांव में बारिश की एक बूंद भी नहीं पड़ी और पूरा गांव सूखे की चपेट में आ गया।गांव वालों की फसलें बर्बाद होने लगी और सभी लोग इससे परेशान हो गए। यह सब देखकर राधा ने गांव पर विपदा आने का कारण सबको बताया।तब गांव वालों को अपनी गलती का एहसास हुआ।राधा की बात मानते हुए गांववालों ने मिलकर नागपंचमी पर उस स्थान पर दूध का पात्र रख दिया जहाँ नाग देवता राधा से मिलने आया करती थीं। सभी मिलकर वहाँ नाग देवता का इंतजार करने लगे।

नाग के स्वागत के लिए पूरे गांव को भी सजाया गया। राधा ने अपने मन में nag को याद किया और अपने वादे के अनुसार nag देवता वहाँ प्रकट हो गए।सभी लोगों ने ना देता को प्रणाम किया और अपनी गलती के लिए क्षमायाचना भी की। राधा ने अपने भाई को दूध पिलाया और गांव में वापस आने का आग्रह किया। इस पर नाग देवता बोले।की मैं अब यहाँ नहीं रह सकता, लेकिन मैं हर नागपंचमी को अपनी बहन से जरूर मिलने आया करूँगा।ना? देवता ने आगे यह भी आश्वासन दिया कि मेरे जाने पर गांव की सारी समस्याएं भी समाप्त हो जाएगी।

यह बोलकर ना देवता वहाँ से वापस चले गए।उनके कहे अनुसार गांव में बारिश हुई और सूखा खत्म हो गया।गांव में सुख समृद्धि लौट आई और लोग आराम से अपना जीवन व्यतीत करने लगे। इस प्रकार जो भी नागपंचमी पर नाग देवता को स्मरण करते हुए उनकी पूजा अर्चना करता है, उस पर नाग देवता की कृपा सदा बनी रहती है। हम आशा करते हैं की यह कथा पढ़ने और सुनने वाले सभी लोगों पर भी नाग देवता की कृपा बनी रहे।

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