shri Krishna Janmashtami| “Unlock the Mysteries of Shri Krishna Janmashtami: Epic Celebrations Await!”

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“Unlock the Mysteries of Shri Krishna Janmashtami: Epic Celebrations Await!”

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| कृष्ण जन्माष्टमी: आ रहे हैं यशोदा के लाल | Shri Krishna Janmashtami

Shri Krishna Janmashtami,श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार कृष्ण भक्तों के लिए एक उत्सव के समान होता है, जिसे हर हिंदू घर में पूरी भक्ति और आस्था के साथ मनाया जाता है। इस दौरान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की ज़ोरों-शोरों से तैयारियां की जाती हैं, साथ ही भक्त शुभ मुहूर्त में भगवान कृष्ण की पूजा-अर्चना

करते हैं, और उनके जन्म का उत्सव मनाते हैं। भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को द्वापर युग में हुआ

था। हमारे पंचांग और गणनाओं की माने तो यह हमारे कन्हैया का 5250वाँ जन्मोत्सव इस वर्ष कृष्ण जन्माष्टमी दिनांक 06 व 07 सितंबर, यानि बुधवार और गुरुवार को मनाई

होगा।

जाएगी। जो कृष्ण जन्माष्टमी 07 सितंबर को मनाई जाएगी, जिसे इस्कॉन कृष्ण जन्माष्टमी के

नाम से भी जाना जाता है।

बृज में आनंद भयो, जय यशोदा लाल की।

हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की ।। कृष्ण जन्माष्टमी प्रारम्भ: 06 सितंबर 03:37 PM से

कृष्ण जन्माष्टमी समापन: 07 सितंबर 04:14 PM तक

रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ 06 सितंबर, 09:20 AM पर

रोहिणी नक्षत्र समापन – 07 सितंबर, 10:25 AM पर 06 सितम्बर निशिता काल पूजा का समय

06 सितंबर 11:33 PM से 07 सितंबर 12:19 AM तक 07 सितम्बर निशिता काल पूजा का समय

07 सितंबर 11:33 PM से 08 सितंबर 12:19 AM तक

भक्तों यह श्री कृष्ण की लीला है कि 6 और 7 सितम्बर दोनों ही तिथियों पर निशिताकल का समय और अवधि एक जैसी ही है।

इसके अलावा दही हांडी उत्सव भी 07 सितंबर, गुरुवार को मनाया जाएगा

अक्सर ऐसा होता है कि कृष्ण जन्माष्टमी दो अलग-अलग दिनों पर हो जाती है। ऐसे में अक्सर इस बात को लेकर उलझन रहती है कि व्रत का पारण कब किया जाए। तो चलिए अब बात करते हैं कि जन्माष्टमी व्रत का पारण कब किया जाए। ऐसी मान्यता है कि देव पूजा, विसर्जन आदि के बाद अगले दिन सूर्योदय पर पारण किया जा सकता है।

यदि आप 6 सितंबर, बुधवार को व्रत

रख रहे हैं तो- पंचांग अनुसार पारण का समय 07 सितंबर, गुरुवार 04:14 PM के बाद से

वैकल्पिक समय

07 सितंबर, गुरुवार 05:41 AM के बाद से • 07 सितंबर, गुरुवार 12:19 AM निशिताकाल पूजा के बाद से

यदि आप 7 सितंबर गुरुवार को व्रत का पालन कर रहे हैं तो-

पंचांग अनुसार पारण का समय 08 सितंबर शुक्रवार 05:41 AM

के बाद से

वैकल्पिक समय 08 सितंबर, शुक्रवार 12:19 AM निशिताकाल पूजा के बाद से

भारत में कई स्थानों पर जन्माष्टमी व्रत का उद्यापन अथवा पारण निशिता काल की पूजा के बाद में किया जाता है। आप अपने क्षेत्र की मान्यता के अनुसार इनमें से किसी भी मुहूर्त में पारण कर सकते हैं।

विशेष मुहूर्त

सर्वार्थ सिद्धि योग पूरे दिन रवि योग 05:40 AM से 09:20 तक

 

आप इस पर्व पर विधि-विधान से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना करें। हमारी कामना है कि यशोदा नंदन आप पर अपनी कृपा सदैव बनाए रखें।

 

🌍🌎🎁🎀🎗✅️✅️👉गौरतलब है कि…)परदेस में कृष्णकुंज | Shri Krishna Janmashtami

Shri Krishna JanmashtamiShri Krishna Janmashtamihappy Krishna Janmashtami

कृष्ण ऐसे इष्ट हैं जिनके बाल रूप को भी लाइ लड़ाया जाता है और पार्थ को गीतोपदेश देने वाले सारथी माधव को भी पूजा जाता है। उनकी तो रणछोड़ लीला पर भी भक्त बलैया लेते हैं। मुरलीधर की हर लीला पूज्य है। आइए जन्माष्टमी के इस मंगलमय अवसर पर यहां दर्शन करते हैं, भारत के बाहर स्थित इन्हीं जगदीश के कुछ देवालयों के। प्रस्तुत हैं

हरे कृष्ण मंदिर

चैट्सवर्थ, दक्षिण अफ्रीका

वर्ष 1975 में अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ के संस्थापक आचार्य श्रील प्रभुपाद दक्षिण अफ्रीका पहुंचे और उन्होंने भक्तों को वहां मंदिर निर्माण का आदेश दिया था। 1985 में चैट्सवर्थ में श्रीश्री राधा राधानाथ मंदिर ने मूर्त रूप लिया और आज श्वेत-स्वर्ण सज्जा से दमकता यह मंदिर अफ्रीका के सुंदरतम मंदिर के रूप में प्रतिष्ठित है।

✅️👉श्रीकृष्ण जन्मा पर विशेष | Shri Krishna Janmashtami

आमु

डॉ. गणे

मुकुट मकराकत कुंडल अरुण तिलक सोही भाल।
मोहिनी मूरत सावरा सूरत मेण बण्या विशाल।
अधर सुधा रस मुरली राजा उर बैजंती माल ।
मीरों प्रभु संतो सुखदायां भगत बद्दल गोपाल ॥

सकारात्मकता से सिंगार

मोर बस्यो म्हारे णेणण मां नंदलाल । श्रीकृष्ण की परम भक्त मीराबाई ने पदावली में भगवान के उस रूप का वर्णन किया जिसकी पूजा वो करती थीं। मुरली मनोहर के सिर पर मोरपंख का मुकुट विराजमान है। वो पीतांबर पहने हैं। उनके गले में वैजयंती माला है। इस अद्भुत स्वरूप में वो वृंदावन में मुरली बजाते हुए गाय चरा रहे हैं। कन्हैया की लीलाएं प्रकृति-प्रेम से वशीभूत हैं। इनके हर एक शृंगार • और प्रतीक में मानव और वातावरण का अनोखा मेल देखने को मिलता है। भगवान के इसी स्वरूप से जुड़े प्रतीकों के बारे में जानते हैं ….

मोरपंख

कृष्ण जब छोटे थे, तब यशोदा माता उनका श्रृंगार करती थीं। सम्मोहक छवि होने से उन्हें डर था कि कहीं कृष्ण को बुरी नजर न लग जाए। इसलिए वो उनके सिर पर मोरपंख लगा दिया करती थीं। कृष्ण ने अपनी मां की चिंता दूर करने के लिए हमेशा इसे अपने मस्तक पर जगह दी। मोरपंख में सुंदरता और आकर्षण भी होता है। इस वजह से भी श्रीकृष्ण के शृंगार में माता मोरपंख का प्रयोग करती थीं।

वैजयंती माला

वैजयंती पौधे से मिलने वाले बीज कभी अपनी चमक नहीं खोते और आसानी से खराब भी नहीं होते। लंबे समय तक एक जैसे बने रहने के कारण इन बीजों की माला बनाई गई। इन अक्षय बीजों से बनी श्वेत माला को लक्ष्मी स्वरूपा होने के कारण शुद्धता, पवित्रता और वैभव का प्रतीक माना जाता है। श्रीमद्भागवत महापुराण के आठवें स्कंध में समुद्र मंथन में मां लक्ष्मी के प्रादुर्भाव के समय यह वर्णन है कि समुद्र ने लक्ष्मीजी का स्वागत करते हुए उन्हें पीले वस्त्र दिए और वरुणदेव ने वैजयंती माला दी। जब लक्ष्मीजी ने भगवान विष्णु का वरण किया तो वैजयंती माला भगवान को पहना दी। इसलिए विष्णु अवतार श्रीकृष्ण वैजयंती माला हमेशा पहने रहते हैं।

चंदन तिलक

.जब shree Krishna का नामकरण संस्कार हुआ तब महर्षि जब श्रीकृष्ण का नामकरण गर्गाचार्य ने उनको सबसे पहले आशीर्वाद के तौर पर चंदन का तिलक लगाया और उनका नामकरण किया। इसके बाद से जब भी माता यशोदा कृष्ण का शृंगार करतीं तो उन्हें चंदन का तिलक लगातीं । श्रीकृष्ण ने अपने गुरु से मिला पहला आशीर्वाद हमेशा अपने साथ रखा। चंदन की सुगंध तनाव दूर कर प्रसन्नता देती है। इसकी सुगंध से एकाग्रता भी बढ़ती है। इसीलिए आज भी छोटे बच्चों को चंदन का तिलक लगाना शुभ माना जाता है।

पीतांबर

भगवान पीतांबरधारी इसलिए हैं क्योंकि हमारी संस्कृति में पीले रंग को सूर्य के तेज के समान उत्साहवर्धक और उत्तम स्वास्थ्य देने वाला माना जाता है। यही वजह है कि सभी शुभ अवसरों पर हल्दी का इस्तेमाल होता है। सूर्य के सारथी अरुण का रंग भी पीला है इसीलिए सूर्योदय के समय पूर्व दिशा पीतवर्णा यानी स्वर्णमय दिखाई देती है। अग्निदेव भी पीतवर्ण हैं और पीला रंग जागृति और कर्मठता का भी प्रतीक है। पीला रंग ऋतुओं के राजा वसंत के आगमन का सूचक है जिस समय प्रकृति अपने पूर्ण यौवन पर होती है। इसलिए ही श्रीकृष्ण ने कहा है कि मैं ऋतुओं में वसंत हूं।

👉गौ से मित्रता और माखन से प्रेम

गाय श्रीकृष्ण का जीवन गाय के साथ ही बीता, क्योंकि उस समय यदुवंशी गाय पालने का काम करते थे। कृष्ण ने बचपन से ही गायें चराईं। उन गायों का दूध पिया और उससे बना मक्खन खाया। गायों में रहने वाले सभी देवता कृष्ण का सान्निध्य चाहते थे, इसलिए उनका पालन-पोषण यदुवंशी परिवार में हुआ। इसके अलावा गाय का गोबर और गोमूत्र शुद्धता के लिए अहम होता है।

हाथों में विजयी-मधुर स्वर के प्रतीक

बांसुरी नंदबाबा ने गोकुल में कृष्ण को बांसुरी दी। तब कृष्ण तीन-चार साल के थे। यह उनका सबसे प्यारा खिलौना बन गया। ये बांसुरी जीवनभर उनके साथ रही। बांस से बनी बांसुरी भगवान को बहुत प्रिय है। इसे वंशी, वेणु, वंशिका और मुरली भी कहा जाता है। वांस प्रकृति का अंग है। बांसुरी का स्वर मन और मस्तिष्क को शांति देने वाला होता है।

माखन यदुवंशी थे इसलिए

• नंदबाबा और यशोदा इस कारण घर में खाने के लिए आसानी से गाय के दूध से बनी वस्तुएं ही मिल पाती थीं । मक्खन लंबे समय तक शक्ति देने वाला होता है, इसलिए यशोदा माता ने श्रीकृष्ण का अन्नप्राशन संस्कार मक्खन से ही करवाया था। कृष्ण के जीवन की पहली मिठाई माखन-मिश्री ही थी। माता के प्रेम से मिले मक्खन को श्रीकृष्ण ने हमेशा अपने साथ रखा, इसलिए उनको मक्खन का भोग लगाया जाता है।

पांचजन्य कृष्ण का प्रिय

शंख, समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में छठा रत्न था। कौरव-पांडव के बीच युद्ध की शुरुआत में अर्जुन के सारथी बने श्रीकृष्ण ने अत्यंत दुर्लभ पांचजन्य शंख बजाया था। इस शंख की ध्वनि पांच मुखों से निकलती थी इसीलिए, इसे पांचजन्य कहा गया। पुराणों के अनुसार, ये पांच ध्वनि-द्वार मनुष्य की पांच इंद्रियों और इनके अंगों के परिचायक हैं। इन इंद्रियों पर नियंत्रण रखकर हर युद्ध में विजयी हुआ जा सकता है।

 

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| ऐसे करें मोर पंख का इस्तेमाल

कृष्ण जन्माष्टमी पर करें श्री कृष्ण के प्रिय मोर

पंख के ये उपाय !

हर साल श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन कान्हा को प्रसन्न करने के लिए भक्त उनको पंख भी अर्पित करते हैं। मान्यता है कि जन्माष्टमी के दिन मोर पंख से जुड़े कुछ उपाय करने से जीवन की परेशानियां भी दूर हो जाती हैं। आइये इस लेख में विस्तार से जानते हैं मोर पंख से जुड़े कुछ उपाय |

आर्थिक समस्या हेतु उपाय

अगर आपके हाथ में थन नहीं टिकता है, तो जन्माष्टमी के दिन पांच मोर पंख लेकर भगवान श्री कृष्ण के पास रख दें। लगातार 21 दिनों तक इनका पूजन करें और बाद में अपनी तिजोरी में रखें। लाल किताब के अनुसार ऐसा करने से घर में मां लक्ष्मी का आगमन जल्द होता है।

वास्तु दोष के लिए

अगर आपके घर में भी वास्तु दोष है। घर के सभी लोग अक्सर परेशान रहते हैं, तो इसको दूर

करने के लिए श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन अपने घर में मोर पंख लेकर आए। इसके बाद कृष्ण

के साथ मोर पंख की भी पूजा करें और घर के पूर्व दिशा में रख दें। ऐसा करने से घर में वास्तु

दोष दूर होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

राहु केतु का प्रभाव कम करने के लिए

अगर आपकी कुंडली में भी राहु-केतु ग्रहों का दोष है, तो दोष को करने दूर करने के लिए जन्माष्टमी के दिन अपने बेडरूम में पश्चिम दिशा में मोर पंख लगा दें। ऐसा करने से दोनों ग्रहों के दुष्प्रभाव की समस्या ठीक हो जाती है।

दांपत्य जीवन में प्रेम बढ़ाने हेतु

अगर कई दिनों से पति-पत्नी के बीच विवाद चल रहा है, तो जन्माष्टमी के दिन मोर पंख को बेडरूम में पूर्व या फिर उत्तर पूर्व दिशा में लगा दें। ऐसा करने से पारिवारिक मतभेद धीर-धीरे कम होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

मोर पंख से मिलेगी सुख-समृद्धि

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जीवन में सुख समृद्धि और सम्मान हासिल करने के लिए श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन मोर पंख को जरूर खरीद कर इसकी पूजा करना चाहिए। ऐसा करने से

साधकों को बहुत अधिक लाभ हासिल होता है।

बच्चों का लगेगा पढ़ाई में मन

अगर आपका बच्चा पढ़ाई पर ध्यान नहीं देता है, तो मोर पंख को बच्चों की किताब के अंदर रख दें। ऐसा करने से बच्चे की एकाग्रता बढ़ती है। वहीं मोर पंख से बने पंखें से हवा करने से बच्चों का जिद्दीपन भी कम होता है।

 

✅️✅️✅️✅️👉👉🎊🎊🎊🎊🎊🎊कृष्ण जन्माष्टमी उपाय

जन्माष्टमी पर करें ये ज्योतिष उपाय दूर होगी आर्थिक समस्या

तंत्र शास्त्र के अनुसार श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन कुछ विशेष उपाय करने की सलाह दी जाती है। ज्योतिष शास्त्र की मानें तो इन विशेष उपायों से लोगों के सभी मनोकामना पूर्ण होती है। इसके साथ ही मुरलीधर का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। आईए जानते हैं, कृष्ण जन्माष्टमी से जुड़े इन उपायों के बारे में विस्तार से ।

आर्थिक तंगी होगी दूर, करें ये उपाय !

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भगवान पुरुषोत्तम को पान का पत्ता अर्पित करें। दूसरे दिन इसी पान के पत्ते पर कुमकुम से श्री यंत्र बनाकर तिजोरी में रख दें। ऐसा करने से धन में वृद्धि होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

जन्माष्टमी के दिन शाम के समय भोग में मक्खन के साथ तुलसी दल डालें और भगवान कृष्ण को इस का भोग लगाए ऐसा करने से आर्थिक स्थिति जल्द ठीक होने लगती हैं।

लाल किताब के अनुसार ऐसी मान्यता है कि जन्माष्टमी पर श्री कृष्ण के साथ लक्ष्मी जी की पूजा करना बहुत अधिक उत्तम होता है और घर में समृद्धि आती है। इसके साथ ही सुख में वृद्धि होती है। कर्ज और आर्थिक संकट से मुक्ति मिलती है।

• अगर आपके जीवन में भी आर्थिक तंगी है और आप उसको दूर करना चाहते हैं, तो जन्माष्टमी पर माता तुलसी जी की पूजा करना न भूलें। पूजा करते समय ओम नमः वासुदेवाय मंत्र का जाप करते हुए 11 बार तुलसी की परिक्रमा करने से धन संबंधित सभी समस्याओं से मुक्ति मिलती है।

जन्माष्टमी के दिन सुबह सूर्य उदय से पहले स्नान करके राधा-कृष्ण मंदिर में कान्हा जी को पीले फूल अर्पित करें। ऐसा करने से मुरलीधर श्री कृष्ण की कृपा आप पर होगी। जिस से आपके जीवन में आर्थिक तंगी की समस्या ठीक हो जाएगी।

• सूर्य उदय से पहले कृष्ण जन्माष्टमी के दिन तुलसी के पौधे के सामने तुलसी की माला से 108 बार ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करने से जातक को कर्ज से मुक्ति मिलती है।

• कृष्ण जन्माष्टमी के सुबह आरती के समय कपूर जलाकर उस पर थोड़ी सी मिश्री डाल दें। ऐसा करने से नौकरी में उन्नति मिलती है। इसके साथ ही कपूर और मिश्री का दान करने से भी लाभ की संभावना बढ़ जाती है।

🎊🎊🎊👉👉👉✅️✅️✅️✅️✅️| श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त | Shri Krishna Janmashtami

धर्म और श्री कृष्ण वो दो मार्ग हैं, जिनका अंतिम गंतव्य भक्ति और प्रेम है। इसी प्रकार, भारत भी अपनी संस्कृति और समर्पण के लिए विश्वभर में विख्यात है। इस भूमि ने कभी मोक्ष और शांति को सरल किया, तो कभी स्तुति और प्रेम से आम जनमानस को प्रभु श्री कृष्ण के समीप पहुंचा • दिया। श्री कृष्ण के कुछ भक्तों ने उन्हें अपने रोम-रोम में बसाकर एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत किया, कि उनकी छवि और नाम के आगे स्वतः ही कृष्ण भक्त शब्द जुड़ गया। ऐसे ही कुछ भक्तों से, आज हम आपको साक्षात कराने वाले हैं।

सूरदास

सूरदास का नाम, भक्तिकाल में सगुण भक्ति और निर्गुण भक्ति शाखा के अंतर्गत आने वाले प्रमुख कवियों में शुमार है। सर्वस्व ही भगवत भक्ति में लीन होकर, उन्होंने अपना जीवन पूरी तरह से श्री कृष्ण के चरण कमलों में समर्पित कर दिया। ऐसी मान्यता है कि कृष्ण भक्ति के ही अंतर्गत, उन्होंने मात्र 6 साल की आयु में अपने पिता की आज्ञा अनुसार, घर का त्याग कर दिया था। भगवान श्री कृष्ण के भक्त, महाकवि सूरदास के भक्तिमय गीत आज भी हर किसी को मोहित करते हैं।

उन्होंने अपने जीवनकाल में भक्ति भावना से कूट-कूट कर भरे ऐसे हजारों दोहे, छंदों की रचना की थी, जो आज भी प्रासंगिक है और जिसे सुनकर, प्रभु भक्त आनंदित आह्लादित हो उठते हैं। सूरदास 1584 ई. में ब्रह्म तत्व में विलीन हो गए थे। जन्म से नेत्रहीन रहे सूरदास को लेकर ऐसा भी कहा जाता है, कि भले ही वो सांसारिक चीजों को देखने से वंचित रहे, लेकिन उनके ज्ञान के चक्षु हमेशा जागृत थे।

मीराबाई

भगवान श्री कृष्ण के भक्तों, संतों और महात्माओं में मीराबाई का स्थान सर्वोपरि है। मान्यता है, कि मीराबाई अपने पूर्व जन्म में श्री कृष्ण की अनन्य भक्त गोपी थीं बचपन से ही वह, श्री कृष्ण की भक्त थीं और उनकी प्रतिमा के सामने, कई घंटों तक बैठकर उन्हें निहारना, यह गुण उनमें पहले से ही विद्यमान थे।

उनका प्रभु से अनुराग, जन्म-जन्मांतर का रहा है। प्रचलित कथाओं के अनुसार, ऐसा बताया गया है, कि अपने पति के वीरगति के पश्चात मीराबाई अपनी समस्त दिनचर्या, श्री कृष्ण में व्यतीत करने लगीं थी।

यह देखकर उनके ससुर राणा सांगा क्रोधित हुए और उन्होंने उनसे कहा, “यदि तुम सच्ची कृष्ण भक्त हो, तो यह विष का प्याला पी जाओ अगर तुम्हें कुछ नहीं हुआ, तो में मान लूँगा, कि तुम सच्ची श्री कृष्ण भक्त हो।” तब उनके वचनानुसार, मीराबाई ने ऐसा ही किया और विष पीने के बाद भी उन्हें कुछ नहीं हुआ।

यह देखकर, राणा सांगा ने उनको सम्मान सहित आजाद कर दिया और मीराबाई, महलों का सुख छोड़कर कृष्ण की भक्ति में लीन हो गई। जिससे वह प्रभु के साक्षात दर्शन प्राप्त कर सकें।

स्वामी प्रभुपाद

हम में से काफ़ी लोग, शायद स्वामी प्रभुपाद के नाम से परिचित नहीं होंगे, लेकिन ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ की ध्वनि से जरूर समझ सकते हैं, कि यह इस्कॉन से सम्बंधित है। इस्कॉन (ISKCON ) यानी ‘इंटरनैशनल सोसाइटी फॉर कृष्ण कांशसनेस’, जिसके एक छोटे से जाप ने आज विश्व पटल पर ऐसी छाप छोड़ी है,

कि प्रभु श्री कृष्ण में लीन लोगों द्वारा कहे जा रहे यह शब्द कानों में मिश्री समान हैं थोडा विस्तार से समझें, तो स्वामी प्रभुपाद इस्कॉन नाम की धार्मिक धरोहर के संस्थापक हैं, जो विश्व में दो चीजों के लिए चर्चित है।

एक कृष्ण भक्ति के लिए और दूसरा, कृष्ण भक्ति को दुनिया के कोने-कोने तक पहुंचाने के लिए। भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद का जन्म सन् 1896 में कोलकाता के एक बिजनेसमैन के घर हुआ, लेकिन उनके पिता ने अपने बेटे का पालन पोषण, एक परम कृष्ण भक्त के रूप में किया था। धीरे-धीरे उनकी आस्था गहराती गई और वह अपने गुरु, सरस्वती गोस्वामी के आश्रय में पूरी तरह से कृष्ण भक्ति में लीन हो गए।

धर्म और प्रभु श्री कृष्ण को अपने रोम-रोम में धारण किये हुए, हमारे आसपास मुरलीधर के ऐसे अनेकों भक्त हैं, जिनकी जीवन रूपी बांसुरी की मधुर आवाज, स्वयं प्रभु है। ऐसे ही भक्तों से, हम सभी को जीवन में कुछ न कुछ अवश्य सीखना चाहिए, जैसे धर्म की छाया का प्रचार-प्रसार और प्रभु के पद चिन्हों पर चलकर, अपना जीवन सार्थक बनाना।

✅️✅️👉🎊🎀✅️✅️✅️| भारत कि विविध जन्माष्टमी |

पूरे देश में भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की तैयारियां जोरो-शोरों पर है। हर साल देश में रास रचैया गोकुल के कान्हा का जन्मदिन यानी जन्माष्टमी बहुत धूमधाम से मनाई जाती है।

मथुरा

जन्माष्टमी पर श्री कृष्ण जी की जन्मस्थली मथुरा की चमक देखने लायक होती है। खास तौर पर मथुरा के जन्मभूमि मंदिर में इस पर्व की भव्यता बिल्कुल अनोखी होती है।

वृंदावन

श्री कृष्ण जन्मभूमि मथुरा से कुछ ही दूरी पर स्थित वृंदावन में जन्माष्टमी की धूम देखने को मिलती है। इस दिन यहां रासलीला का आयोजन किया जाता है और यहां के छोटे-छोटे बच्चे राधा-कृष्ण का रूप धारण कर रासलीला करते हैं।

द्वारका

द्वारका ऐतिहासिक रूप से भगवान कृष्ण के राज्य के रूप में जाना जाता है। द्वारका में द्वारकाधीश मंदिर उन्हें समर्पित है। इस दिन, बाल गोपाल के जन्मोत्सव के लिए मंदिर को खूबसूरती से सजाया जाता है और कीर्तन और भजन गाए जाते हैं।

महाराष्ट्र

महाराष्ट्र में जन्माष्टमी को मनाने का तरीका बड़ा ही रोमांचक है। यहां जगह-जगह पर जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में दही-हांडी का आयोजन किया जाता है। लोग पूरे उत्साह के साथ दही-हांडी तोड़ते हैं और हर तरफ आपको हर्षोल्लास का माहौल देखने को मिलता है।

ओडिशा

ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में श्रीकृष्ण अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के

साथ जगन्नाथ के रूप में विराजमान हैं। यहां भी जन्माष्टमी को बड़े खास तरीके से मनाया जाता है। इस दिन देवी सुभद्रा अपने भाई बलभद्र और भगवान जगन्नाथ को राखी बाँधती हैं।

श्रीकृष्ण मंदिर, उडुपी

कर्नाटक में श्री कृष्ण मठ, भगवान कृष्ण को समर्पित है। यह मंदिर भी अपने जन्माष्टमी समारोह

के लिए देश भर में प्रसिद्ध है।

इंफाल, मणिपुर

भारत के पूर्वोत्तर में स्थित, इंफाल के कई कृष्ण मंदिरों में जन्माष्टमी के दौरान भगवान कृष्ण को समर्पित मणिपुरी प्रदर्शन और रासलीला होती है मणिपुर में इस दिन को कृष्ण जामा के नाम से जाना जाता है। यहां उत्सव आधी रात से शुरू होता है और भोर तक जारी रहता है। कृष्ण के जन्म को चिह्नित करने के लिए विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

गुरुवायूर मंदिर, केरल

दक्षिण भारत में शीर्ष मंदिरों की शामिल, गुरुवायूर मंदिर को ‘दक्षिण के द्वारका’ के रूप में भी जाना जाता है। इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यह वह स्थान है जहाँ भगवान शिव परिवार नै विष्णु की पूजा की थी। यहां पर भी जन्माष्टमी के पर्व की दिव्यता की चमक चारों ओर आपको देखने को मिलेगी।

इस्कॉन मंदिर

इस्कॉन मंदिर देश-विदेश में कई जगहों पर स्थित है। यह संस्थान पूरी तरह श्रीकृष्ण को समर्पित, देश-विदेश के हर इस्कॉन मंदिर में जन्माष्टमी की रौनक देखते बनती है। यहां के मंदिरों का वातावरण पूरी तरह से कृष्णमय हो जाता है और हर भक्त पूरी आस्था के साथ अपने आराध्य की भक्ति में लीन रहता है।

✅️🎀🎊👉👉🎊✅️✅️✅️✅️ जन्माष्टमी: क्या-क्या करें खरीदें | Shri Krishna Janmashtami

कान्हा जी के जन्मोत्सव की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं और इस साल 06 और 07 सितम्बर का दिन, कृष्णमय रहने वाला है। इस अवसर को और भी यादगार बनाने के लिए कुछ आवश्यक सामग्रियों की सूची जरूरी है जो जन्माष्टमी को अधिक खास बनाएंगी-

1. सिंहासन

जन्माष्टमी के त्योहार के दौरान, बाज़ारों में भी लड्डू गोपाल के स्वागत की तैयारियां शुरू हो गईं हैं। श्रीकृष्ण को मंदिर में स्थापित करने के लिए आसन की आवश्यकता होती है और आपको बाजार में कई प्रकार के आसन मिल जाएंगे। आप खरीदारी करते समय अपनी पसंद का आसन खरीदना न भूलें।

2. फूलों के गहने

कान्हा जी के श्रृंगार के लिए, बाज़ार में फूलों के गहने भी मौजूद हैं। नन्हे से कान्हा जी के लिए आप गुलाब या गेंदे के फूल से निर्मित माला आदि खरीद सकते हैं। आप मंदिर को सजाने के लिए भी फूलों की लड़ियों का इस्तेमाल कर सकते हैं। फूलों की सुगंध और खूबसूरती आपके मंदिर की शोभा में चार चाँद लगा देगी।

3. बांसुरी

इस दिन भगवान को बांसुरी अर्पित करने का और उसे सजाने का विशेष महत्व है। भगवान श्रीकृष्ण को बांसुरी अत्यंत प्रिय भी है तो आप उन्हें बांसुरी अवश्य अर्पित करें और इसे खरीदना न भूलें।

4. अष्टधातु के ठाकुर जी

श्री कृष्ण जन्मोत्सव के लिए बाजार में पंचधातु, अष्टधातु के भी लहूगोपाल मौजूद हैं। भक्त

स्वेच्छानुसार, अलग-अलग धातु के छोटे या बड़े आकार के ठाकुर जी खरीद सकते हैं।

5. खूबसूरत पोशाक

आप ठाकुर जी को तैयार करने के लिए कुंदन, जरी और गोटा पत्ती आदि से सजी पोशाक भी खरीद सकते हैं। ये पोशाक, आपको बाजार में हर रंग और हर आकार में मिल जाएंगी।

6. मंदिर में लगाने के लिए लाइट

जन्माष्टमी के अवसर पर आप आपने घर में स्थित मंदिर या पूजा घर को सुंदर झालरों से सजा सकते हैं। इस वक़्त बाज़ार में बहुत सारी लाइट और झालरें मौजूद हैं, इनकी रोशनी से

आपका मंदिर बेहद आकर्षक लगने लगेगा।

7. झूला

श्री कृष्ण के जन्मोत्सव में झूले का अत्यंत महत्व है, क्योंकि कारागार में जन्म होने के बाद उनके पिता वासुदेव उन्हें मैय्या यशोदा के पास पालने में ही छोड़कर वापस लौट आए थे।

इसलिए अगर आप भी श्री कृष्ण जन्मष्टमी की खरीददारी का मन बना रहे हैं, तो भगवान के

लिए एक झूला ज़रूर खरीदें।

8. पूजा सामग्री

श्री कृष्ण जन्माष्टमी के लिए होने वाली पूजा में एक खीरा, एक साफ़ चौकी, पीला साफ कपड़ा, • बाल कृष्ण की मूर्ति, एक सिंहासन, पंचामृत, गंगाजल, दीपक, दही, शहद, दूध, दीपक, घी, बाती, धूपबत्ती, चंदन, अक्षत, माखन और मिश्री आदि की आवश्यकता होती है। यह सब आप पूजा करने के एक दिन पहले या कुछ दिन पहले बाजार से खरीदकर रख सकते हैं।

9. प्रसाद की सामग्री

जन्माष्टमी पर होने वाली पूजा में मुख्य प्रसाद पंचामृत होता है, जिससे भगवान को भोग लगाया जाता है। इसमें पांच मेवा, दूध, दही, घी, गंगाजल और शहद मिला होता है और यह भोग के

लिए, सबसे अनिवार्य और उत्तम माना जाता है। इसके अतिरिक्त, इस दिन पंजीरी का भी विशेष

महत्व होता है, तो आप उसे बनाने की सामग्री बाज़ार से ज़रूर ले आएं।

10. झूले को सजाने का सामान

कृष्ण जन्मोत्सव में झूले का बहुत महत्व होता है, क्योंकि इस दिन भगवान जी की पूजा एक नवजात शिशु के रूप में होती है। इसलिए आप झूले के साथ उसे सजाने का सामान भी खरीद सकते हैं। इनमें मखमल का बिछौना, रेशम की डोर, सुंदर तकिया और खिलौने आदि शामिल हैं।

इन तैयारियों से आपके इस त्योहार में भक्ति के साथ खुशियों के भी रंग घुल जाएगी।

✅️✅️✅️🎊🎊🎊🎊🎊🎊✅️✅️✅️✅️| माखन से बनेंगे 4 विशेष भोग | Shri Krishna Janmashtami

पूरे देशभर में कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन घर में कई तरह के पकवान बनते हैं। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि कान्हा को दही के अलावा, माखन भी अत्यंत प्रिय है। इसलिए जन्माष्टमी के दिन बाल गोपाल को माखन और माखन से बनी चीज़ों का भोग लगाए जाने की रीति भी सदियों से चली आ रही है। माखन से बनी ऐसी ही चार चीजें हैं जिसे आप बाल गोपाल के भोग में शामिल कर सकते हैं।

1. माखन मिश्री

जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर बाल गोपाल को माखन मिश्री का भोग लगाया जाता है। फिर इसे भक्तों में प्रसाद के रूप में बाँटा जाता है। माखन मिश्री, ताज़ा सफेद माखन और पीसी हुई मिश्री का मिश्रण होता है, जिसे बनाने में भी बहुत कम समय लगता है। ऐसी मान्यता है, कि माखन मिश्री का सेवन करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है। जो नियमित माखन मिश्री का सेवन करता है, उसके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ जाती है

2. केसर माखन पेड़ा

जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर आप कान्हा को माखन मिश्री की जगह कैसर माखन पेड़ा का भोग भी लगा सकते हैं। इसे केसर, दूध, मक्खन और मिश्री के साथ मिलाकर बनाया जाता है। यह मलाईदार पेड़ा, बाल गोपाल के भोग के लिए एक अच्छा पकवान है। इसे बनाने में भी ज़्यादा समय नहीं लगता। तो आप भी इसे बनाएं और बाल गोपाल को भोग लगाएं।

3. माखन मेवा

बाल गोपाल के अत्यंत प्रिय माखन से बना एक और पकवान है माखन मेवा मक्खन, केसर, शक्कर और मिश्री के अलावा इसमें काजू, पिस्ता, मुनक्का आदि भी डाला जाता है। साथ ही इसमें तुलसी के पत्तों का भी इस्तेमाल किया जाता है। यह पकवान बनाने में भी बहुत आसान होता है।

4. माखन लड्डू

नारियल और केसर के साथ मक्खन मिलाकर बना हुआ यह पकवान भी लड्डू गोपाल को भोग में लगाया जा सकता है। इसे बनाने में खूब सारे काजू, किशमिश, बादाम और पिस्तों का भी • इस्तेमाल होता है। साथ ही इसमें मिठास के लिए, दरदरी पीसी मिश्री मिलाई जाती है। तो आप चाहें तो इस बार की जन्माष्टमी में कान्हा को माखन लड्डू का भोग लगा सकते हैं।

✅️🎊🎊👉👉👉👉🎊✅️✅️✅️| पंजीरी के भोग का महत्व |

जन्माष्टमी के पर्व पर भगवान को अर्पित किए जाने वाले भोग में पंजीरी का विशेष महत्व है। कहते हैं कि पंजीरी के बिना कान्हा का भोग अधूरा माना जाता है। आखिरकार जन्माष्टमी पर्व पर कान्हा के भोग में पंजीरी का बहुत महत्व हैं।

दरअसल, मान्यताओं के अनुसार, श्रीकृष्ण को पंजीरी का भोग अत्यंत प्रिय है। उसके पीछे का कारण यह माना जाता है कि जब कान्हा जी माखन-मिश्री का सेवन अधिक कर लेते थे, तब माँ यशोदा माखन मिश्री के अधिक सेवन से कान्हा जी को कोई हानि न पहुंचे। तब उन्हें धनिए की पंजीरी खिलाया करती थीं। इसका कारण ये है कि खड़ा धनिया पाचन में सहायक होता है। साथ ही इसके सेवन से वात और कफ के दोषों से भी मुक्ति मिलती है।

सामग्री

100 ग्राम खड़ा धनिया

3 चम्मच देसी घी

1/2 कप मखाना

1/2 कप शक्कर का बूरा

10-12 काजू

10 से 12 बादाम

1 चम्मच चिरौंजी

इसके अलावा जन्माष्टमी पर पंजीरी बनाने का एक और महत्व है। जिसमें कहा जाता है कि जो भक्त रात्रि 12 बजे कृष्ण जन्मोत्सव के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं। यह समय सामान्यतः कुछ भी खाने योग्य नहीं माना जाता है। ऐसे में यदि कोई व्यक्ति गलत आहार ले तो इससे उसके पाचन तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

ऐसे में धनिया पंजीरी मीठी और सुस्वाद होकर भी कफ एवं वात के दोष को नहीं बढ़ाती है। इसके विपरीत सामान्य आटा पंजीरी या अन्य मीठी चीजों से व्रत पूर्ण किया जाए तो वह स्वास्थ्य के लिए अहितकर हो सकता है। वहीं जब जन्माष्टमी का व्रत किया जाता है तब वर्षा ऋतु होती है, इस मौसम में भी धनिए की पंजीरी का सेवन सामान्य तौर पर लाभदायक माना जाता है।

| पंजीरी बनाने की विधि

सबसे पहले खड़े धनिया को पीसकर पाउडर बना लें। फिर एक कढ़ाई में घी गर्म करें। इसके बाद कढ़ाई में धनिया पाउडर मिलाकर अच्छी तरह से भून लें। धनिया पाउडर भूनने के बाद आप मखाने और अन्य मेवों को बारीक काटकर घी में हल्का भूनें। फिर मखानों के साथ सभी मेवों को इसमें मिला दें और इस मिश्रण को भुनें हुए धनिए के पाउडर में मिला दें।

इस पंजीरी में शक्कर का बूरा डाल दें और अच्छे से मिला दें। इसी के साथ आपकी पंजीरी बनकर तैयार है।

धनिए की पंजीरी धार्मिक महत्व के साथ-साथ व्रत में ग्रहण करने के लिए एक बेहतरीन एवं स्वास्थ्यवर्धक विकल्प है। आप भी इस जन्माष्टमी पर आटे की जगह धनिए की पंजीरी को प्राथमिकता दें और ऊपर दी गई विधि की मदद से जन्माष्टमी पर्व पर पंजीरी अवश्य बनाएं।

✅️✅️🎊🎊👉👉👉🎊✅️✅️✅️✅️| जन्माष्टमी पर पंचामृत क्यों है जरूरी |

हिंदू धर्म में भगवान जी को पंचामृत से स्नान करवाने का विशेष महत्व माना गया है। भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित सबसे बड़े पर्व में भी पंचामृत का विशेष महत्व होता है। इस दिन कान्हा जी को पंचामृत से स्नान करवाना अत्यंत शुभ माना जाता है। पंचामृत को अत्यंत पवित्र और लाभकारी माना गया है। साथ ही जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण को इससे स्नान करवाने का भी महत्व है।

पंचामृत जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि ये पांच चीज़ों के मिश्रण से बनता है। इसमें दूध, दही, घी, शहद और शक्कर शामिल है। इन पांचों चीजों का अपना विशेष महत्व है। अगर बात करें दूध की तो गाय के दूध को अमृत के समान माना गया है। साथ ही इसे शुद्ध और पवित्र भी माना जाता है। शहद को भी गुणों का भंडार माना गया है, साथ ही इसे धार्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना गया है।

शहद मधुमक्खियों पैदा करती हैं इसलिए ये समर्पण और एकाग्रता का प्रतीक है। चीनी का संबंध मिठास और आनंद से है, वहीं दही समृद्धि का प्रतीक है। हमारे धर्म में किसी महत्वपूर्ण कार्य से पहले भी दही-शक्कर खाने की परंपरा है।

पंचामृत की सामग्री के इन गुणों के कारण उसे अत्यंत पावन एवं शुभ माना गया है। ऐसा हमेशा से माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण को दूध, दही आदि बहुत प्रिय है। इस कारण से भी पंचामृत चढ़ाना उन्हें लाभदायक माना गया है।

इसे भोग के रूप में भी अर्पित किया जाता है, क्योंकि इन पांचों चीजों का मिश्रण इसे काफी स्वादिष्ट बना देता है। पंचामृत को स्वास्थ्य के लिए भी बेहद अच्छा माना गया है। इसमें डाली जाने वाली पांचों चीजें स्वास्थ्यवर्धक होती हैं, इससे इस पवित्र भोग का महत्व और भी बढ़ जाता है।

उपरोक्त सभी कारणों से पंचामृत से भगवान श्रीकृष्ण को स्नान करवाना बहुत महत्वपूर्ण माना गया है । आप भी इस पवित्र पर्व पर भगवान जी को पंचामृत अवश्य अर्पित करें।

✅️✅️✅️🎊🎊🎊🎊🎊🎊✅️✅️✅️✅️✅️| क्या है छप्पन भोग का रहस्य |

हिंदू धर्म का उत्सव और पर्वों के साथ एक आत्मिक और आध्यात्मिक रिश्ता है। ऐसा ही एक पर्व है जन्माष्टमी, जिसे देश के हर क्षेत्र में अत्यंत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। जन्माष्टमी के इस पावन अवसर पर भक्तजन भगवान को छप्पन भोग लगाते है जिसके पीछे दो कथाएं अत्यंत प्रचलित है।

जिसमें पहली कथानुसार, बचपन से श्री कृष्ण दिन के आठों पहर अपनी मैया यशोदा के हाथों से भोजन खाया करते थे। जब एक बार उन्होंने गोकुल निवासियों को इंद्र की पूजा ना कर, गौ माताओं की पूजा करने की प्रेरणा दी, तब इस बात से देवराज इंद्र को अत्यंत अपमान बोध हुआ था। क्रोशित इंद्र देव ने तब समस्त गोकुल को भारी वज्रपात और वर्षों के बीच छोड़ दिया।

ऐसे में श्री कृष्ण ने सभी गोकुलवासियों को गोवर्धन पर्वत के नीचे जाकर ठहरने के लिए कहा और अपनी कनिष्ठा उंगली से गोवर्धन पर्वत का भार उठाए रखा। यह सिलसिला अगले सात दिनों तक चला और अंत में देवराज इंद्र को श्री कृष्ण के वास्तविक स्वरूप का आभास हो

गया।

जब सात दिनों बाद गोकुल में वर्षा थम गई और सब कुछ पहले जैसा सामान्य हो गया, तो सभी गोकुलवासियों ने भगवान श्री कृष्ण का जयजयकार करते हुए और उन्हें अपना आराध्य मानते हुए छप्पन व्यंजनों का भोग लगाया।

व्यंजनों की संख्या 56 इसलिए थी क्योंकि उन्होंने सात दिनों तक हर आठ प्रहर गोकुल वासियों को अपनी कृपा की छाँव में संभाल कर रखा था। इसलिए उन्होंने हर दिन के हर प्रहर

का कुल मिलाकर 56 भोग उनके सामने प्रस्तुत किया था। छप्पन भोग से जुड़ी एक ये भी मान्यता है कि गौ लोक में श्री कृष्ण और राधा एक कमल के पुष्प पर विराजते हैं। जिस कमल पर वे दोनों अधिष्ठित रहते हैं, उसकी तीन परतों में कुल 56

पंखुड़ियाँ हैं। इसलिए भगवान को 56 व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। इसके अलावा 56 भोग से जुड़ा एक तथ्य यह भी है कि भोजन के कुल छह रस होते हैं- कड़वा, तीखा, अम्ल, • नमकीन, कसैला और मीठा। इन छह स्सों के जितने भी व्यंजन हो सकते हैं, उन सभी को प्रभु को अर्पित किया जाता है।

56 छप्पन भोग के व्यंजन

  1. भात यानी पके हुए चावल
  2. सूप यानी दाल
  3. प्रलेह यानी चटनी
  4. सदिका यानी कढ़ी
  5. दधिशाकजा यानी दही और शाक की कढ़ी
  6. सिखरिणी
  7. अवलेह यानी शर्बत
  8. बाटी
  9. इभु खेरिणी यानी मुरब्बा
  10. त्रिकोण
  11. बटक यानी बड़े
  12. मठरी
  13. फैनी
  14. पुरी
  15. शतपत्र
  16. पैवर
  17. मालपुआ
  18. चिल्डिका
  19. जलेबी
  20. धृतपूर
  21. रसगुल्ला
  22. चन्द्रकला
  23. स्थूली
  24. रायता
  25. लौंगपूरी
  26. खुरमा
  27. दलिया
  28. परिखा
  29. सौंफ
  30. दधिरूप
  31. मोदक
  32. शाक
  33. अचार
  34. मंडका
  35. खीर
  36. दही
  37. घी
  38. मक्खन
  39. मलाई
  40. कूपिका
  41. पापड़
  42. शीरा
  43. लस्सी
  44. सुवत
  45. मोहन
  46. सुपारी
  47. इलायची
  48. ताम्बूल
  49. फल
  50. मोहन भोग
  51. कषाय
  52. अम्ल
  53. कटु
  54. तिक्त
  55. मथुर और
  56. लवण

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